UGC Approved Journal no 63975(19)

ISSN: 2349-5162 | ESTD Year : 2014
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Volume 11 | Issue 3 | March 2024

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Published in:

Volume 5 Issue 6
June-2018
eISSN: 2349-5162

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Published Paper ID:
JETIR1806855


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304086

Page Number

420-421

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Jetir RMS

Title

बिहार के आधुनिक उद्योग के विकास में नारियों का महत्व

Abstract

19वीं सदी में पूर्वार्घ्द तक बिहार के कुटीर और लघु उद्योग –धंधों का विनाश हो गया. वृहत पैनाम पर अग्रेजी मालों के का आयात शुरू हुआ. रस्ते मालों से बाजरा पट गया. फलतः लघु उद्योग-धंधों के दिन लद गए. यूरोप से लौह-इस्पात के उत्पादों से मुंगेर का लौह इस्पात के लौह संयंत्र और बिहार का देशी लौह खनन भी प्रभावित हुआ. 1833 ईं, के चार्टर एक्ट द्वारा भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार का अंत हो गया. 1885 ई में पटना स्थित वाणिज्य दूत का कार्यालय बन्द कर दिया गया. फ्रांसीसियों ने तो पहले ही अनेकों व्यापारिक कारोबार से खुद को अलग कर लिया था, 1825 ई. में डचों ने बिहार में अपनी कोठियों को अंग्रेजों को दे दिया. 1845 ई में डचों ने भी यही काम किय़ा. फलतः आधुनिक उद्योग के विकास का रास्ता खुल गया. टाटा लौह एवं इस्पात उद्योग की स्थापना न केवल बिहार बल्कि भारतीय इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ. 1907 ई में / लौहा और 1913 ई में इस्पाक का उत्पादन करने लगी थी. 1916 ई में लगभग 40000 लोग इसमे कार्यरत थे. फोरमैन समेत तमाम उच्च पदों पर यूरोपीय और अमेरिकी काबिज थे. कुशल श्रमिक मुख्यतः पंजाब और संयुक्त प्रांत से लाए गए थे. तथा सिंहभूम और आसपास के जिलों से आदिवासी दलित-पिछड़े अकुशल श्रमिकों के रुप में खटते थे. अधिकाश श्रमिक स्थायी थे. दूसरा बड़ा उद्योग जमापुर का ईस्टर्न इंडिया रेलवे वर्कशाप्स था.यहां काम करनेवाले लोगों की संख्या लगभग 12000 थी. अधिकांश स्थायी श्रमिक आसपास के गांवों से भर्ती किये गये थे. एक अन्य उद्योग मुंगेर में पेनिन्सुलर दो बैकों कंपनी था,जिसमे लगभग 2000 श्रमिक कार्यरत थे और उनकी भर्ती मुख्यतः मुंगेर शहर से की गयी थी. झरिया,रामगढ़ गिरिडीह और पलामू में फैले कोयला खानों में लगभग एक लाख मजदूर कार्यरत थे. झरिया अंचल के अधिकतर मजदूर मौसमी थे. और खेती का काम निपटने का बाद बड़ संख्या में खानों की ओर चले आते थे. अधिकांश मजदूर तो स्थानीय आदिवासी और अन्य देहाती गरीब थे. फिर भी मध्य प्रांत और संयुक्त प्रांत से भी कुछ मजदूरों की भर्ती की गई थी. गिरिड़ीह अंचल में जहां प्रमुख कोयला खानों के मालिक ईस्ट इंडिया रेलवे थी. मोटामोटी स्थानीय लोगों के बीच से स्थायी बहाली की प्रथा थी. अभ्रक उद्योग विकासोन्मुख था. 1915 ई तक केवल हजारीबाद जनपद में ही 40 खदान थे,जिनमे 10000 मजदूर कार्य़रत थे. गया और मुंगेर के खदानों में भी काफी लोग कार्यरत थे. बिहार का लाल अभ्रक दुनिया भर में सबसे अच्छे किस्म का अभ्रक माना जाता है. विद्युत उद्योग के लिए यह अपरिहार्य माना जाता है.

Key Words

बिहार के आधुनिक उद्योग के विकास में नारियों का महत्व

Cite This Article

"बिहार के आधुनिक उद्योग के विकास में नारियों का महत्व", International Journal of Emerging Technologies and Innovative Research (www.jetir.org), ISSN:2349-5162, Vol.5, Issue 6, page no.420-421, June-2018, Available :http://www.jetir.org/papers/JETIR1806855.pdf

ISSN


2349-5162 | Impact Factor 7.95 Calculate by Google Scholar

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"बिहार के आधुनिक उद्योग के विकास में नारियों का महत्व", International Journal of Emerging Technologies and Innovative Research (www.jetir.org | UGC and issn Approved), ISSN:2349-5162, Vol.5, Issue 6, page no. pp420-421, June-2018, Available at : http://www.jetir.org/papers/JETIR1806855.pdf

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Published Paper ID: JETIR1806855
Registration ID: 304086
Published In: Volume 5 | Issue 6 | Year June-2018
DOI (Digital Object Identifier):
Page No: 420-421
Country: -, -, - .
Area: Engineering
ISSN Number: 2349-5162
Publisher: IJ Publication


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