UGC Approved Journal no 63975(19)

ISSN: 2349-5162 | ESTD Year : 2014
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Volume 11 | Issue 4 | April 2024

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Published in:

Volume 8 Issue 11
November-2021
eISSN: 2349-5162

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Published Paper ID:
JETIR2111096


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316680

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a716-a721

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Jetir RMS

Title

1- भारत में जातीय व्यवस्था के संदर्भ में संवैधानिक विकास में अंबेडकर दर्शन का विवेचन

Abstract

हमारा काम पूरा हो चुका है मेरी कामना है कि कल सूर्य उदय हो, नए भारत को राजनीतिक स्वतंत्रता तो मिल गई है, लेकिन सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता के सूर्य का उदय होना बाकी है। जातियां हिंदू सामाजिक संरचना की आधारशिला है, जाति व्यवस्था की निरंकुशता उपनिषदों की उच्च माता और गीता की नीतियां शब्दों तक ही सीमित हो गई है। संपूर्ण निर्जीव व सचिव जगत के एक तत्व पर बल देने वाले भारत ने ऐसी सामाजिक व्यवस्था का पोषण किया, जिसने अपनी समस्त संतानों को विभिन्न विभागों में विभक्त कर सदियों के पीढ़ी दर पीढ़ी एक दूसरे से अलग कर दिया। भारत में समता का अभाव देखने को मिलता है। राजनीतिक जीवन में क्षमता आवश्यक मिली है किंतु आर्थिक सामाजिक जीवन में विषमता का वर्चस्व है। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने इस विषमता को क्षमता में परिवर्तित करने हेतु स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात एवं संविधान निर्माण तक विभिन्न अधिनियम आंदोलनों अनुच्छेद दो ग्रंथों के माध्यम से अपना संपूर्ण जीवन सुहाग कर दिया किंतु फिर भी जातियों के कारण उत्पन्न विभेद को भारतीय संस्कृति से पूर्ण तह समाप्त करने में वे सफल नहीं हो सके। प्राचीन काल में जाति प्रथा विभिन्न कार्यकलापों के आधार पर निश्चित थी, किंतु कालांतर में इसे जन्म के आधार पर स्वीकार किया गया। हिंदू धर्म ग्रंथ ऋग्वेद, तेतरीय संहिता, गीता तथा नारद स्मृति आदि के चार प्रकार के सेवक, पांचवे दास व दातों के 15 प्रकारों का उल्लेख मिलता है, किंतु जातियों का कहीं भी उल्लेख नहीं। यदि स्मृति काल के पूर्व जातियों की उत्पत्ति हो चुकी होती तो नारद स्मृति संहिता मैं इसका उल्लेख अवश्य कहीं ना कहीं मिलता। श्वेत यजुर्वेद के अध्याय 16 में भी कई प्रकार के व्यवसाय का उल्लेख है किंतु जाति का उल्लेख नहीं। सतत ऐतिहासिक राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तनों के कारण वर्ण व जाति व्यवस्था की जगह भारत में अपना स्थान बनाती चली गई। सिकंदर, गाजी खान, नादिर शाह के आक्रमणों के परिणाम स्वरूप उत्पन्न राजनीतिक उथल-पुथल तथा बौद्ध, जैन जैसे जाति विरोधी धर्मों का प्रभाव, आदित्य दर्शन और 19वीं सदी के विभिन्न आंदोलनों में जाति और वर्ण व्यवस्था की नीव को हिला नहीं सके।

Key Words

जाति व्यवस्था, अस्पृश्यता, छुआछूत, समानता, अधिकार एवं अधिनियम।

Cite This Article

"1- भारत में जातीय व्यवस्था के संदर्भ में संवैधानिक विकास में अंबेडकर दर्शन का विवेचन", International Journal of Emerging Technologies and Innovative Research (www.jetir.org), ISSN:2349-5162, Vol.8, Issue 11, page no.a716-a721, November-2021, Available :http://www.jetir.org/papers/JETIR2111096.pdf

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"1- भारत में जातीय व्यवस्था के संदर्भ में संवैधानिक विकास में अंबेडकर दर्शन का विवेचन", International Journal of Emerging Technologies and Innovative Research (www.jetir.org | UGC and issn Approved), ISSN:2349-5162, Vol.8, Issue 11, page no. ppa716-a721, November-2021, Available at : http://www.jetir.org/papers/JETIR2111096.pdf

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Published Paper ID: JETIR2111096
Registration ID: 316680
Published In: Volume 8 | Issue 11 | Year November-2021
DOI (Digital Object Identifier):
Page No: a716-a721
Country: bhopal, Madhaya Pradesh, India .
Area: Arts
ISSN Number: 2349-5162
Publisher: IJ Publication


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