Title
Retimbra Mahakavya Me Saundrya Yojna
Abstract
सौन्दर्य का अर्थ होता है अच्छी प्रकार से आर्द्र या रसासिक्त करने वाला | कुछ विद्वानों के मत में सौन्दर्य का अर्थ है अच्छी प्रकार प्रसन्न करने वाला | भाषा वैज्ञानिकों की दृष्टि में यह शब्द ‘उन्द’ और ‘नन्द’ धातुओं से निष्पन्न है | ‘सुनर’ में ‘द’ वर्ग का आगम होने पर सुंदर शब्द बनता है | ‘सुन्द’ को लाने वाला सुन्दर और सुन्दर भाव से युक्त सौन्दर्य कहलाता है | साहित्य में सौन्दर्य की अभिव्यक्ति सदा से होती आई है | मानव सदा से आनन्द कामी रहा है इसी आनन्द को प्राप्ति के लिए वह सौन्दर्य का रूपांकन कला में करता आया है | डॉ सुधा सक्सेना के मतानुसार “व्यापक रूप में सौन्दर्य वह है जो हमारी ज्ञानेन्द्रियों को प्रिय लगे | प्रियता का भाव सौन्दर्य का मूल है .....सौन्दर्य का यह भाव विषयगत या विषयीगत दोनों हो सकता है | सौन्दर्य का मूल सामंजस्य अथवा समुचित संगठन (Harmony) में निहित है |” 1
सौन्दर्य आनंद को पहली शर्त है | काव्य रचना करते समय कवि को आनन्दानुभूति होती है तो पढ़ते समय पाठक को आनन्द आता है | काव्य कला में सौन्दर्य बाहृय और आंतरिक दोनों ही रूपों में विद्यमान रहता है | डॉ. वीणा माथुर का अभिमत है –“ जिस प्रकार पुष्प में सुगंध एवं मृदुलता है और चंद्रमा में शीतलता एवं स्निगधता उसी प्रकार काव्य में सौन्दर्यानुभूति है |” 2
आचार्य रामचंद्र शुक्ल कि मान्यता है कि – “ सौन्दर्य का दर्शन मनुष्य मनुष्य में ही नही करता है, प्रत्युत गुम्फित पुष्प हास में,पक्षियों के पक्षजाल में सिन्दुराम सांध्य दिगंचल में हिरण्य में मेखलामंडित ‘धनखंड में तुषाराव्रत तुंग गिरी शिखर में न जाने कितनी वस्तुओं में वह सौन्दर्य की झलक पाता है |” 3
शुक्लजी के उपर्युक्त कथन के आधार पर सौन्दर्य कि दो कोटिया मानी जा सकती है (1) मानव सौन्दर्य (2)प्रकृति सौन्दर्य | इस संदर्भ में ‘प्रभात’ का कथन है कि “कवि शाश्वत सौन्दर्य का लिपिक होता है | वह शब्दों की आत्मा में अपने को अपने युग को सम्पूर्ण का वर्तमान को एवं समस्त भविष्य को छितरा देता है और इस विलयन का प्रत्येक क्षण, प्रत्येक कण जीवन के गीत निरवशेष स्वर बनकर गूंजता रहता है | शब्द सौन्दर्य साक्षात्कार तभी होता है जब कवि अपने को बिसार कर, अपने बाहृय रूप को भूलकर उस ज्योतिमर्य चेतना लोक में पहुँच जाता है, जहाँ की रूपाभा निहारकर साधारण व्यक्ति कुछ बोल भी नही सकता | सांसे चलती रहती हैं, मन का भोलापन प्रश्न करता है | चेतनयमान मस्तिष्क उतर देता है | जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई यही है | उसकी अभिव्यंजना काव्य-गरिमा के नाम से की जाती है |
Cite This Article
"Retimbra Mahakavya Me Saundrya Yojna ", International Journal of Emerging Technologies and Innovative Research (www.jetir.org), ISSN:2349-5162, Vol.6, Issue 6, page no.585-587, June 2019, Available :
http://www.jetir.org/papers/JETIR1907K89.pdf
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"Retimbra Mahakavya Me Saundrya Yojna ", International Journal of Emerging Technologies and Innovative Research (www.jetir.org | UGC and issn Approved), ISSN:2349-5162, Vol.6, Issue 6, page no. pp585-587, June 2019, Available at : http://www.jetir.org/papers/JETIR1907K89.pdf
Publication Details
Published Paper ID: JETIR1907K89
Registration ID: 223187
Published In: Volume 6 | Issue 6 | Year June-2019
DOI (Digital Object Identifier):
Page No: 585-587
Country: REWARI, HARYANA , India .
Area: Arts
ISSN Number: 2349-5162
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