Abstract
नयी कविता की दृष्टि आधुनिक बोध से परिपूर्ण है। वह भाव-बोध और शिल्प के स्तर पर अन्वेषण में विश्वास रखती है, इसलिए वह ज्ञात से अज्ञात की ओर, परिचित से अपरिचित की ओर बढ़ती है। नये कवि की दृष्टि एक विश्वदृष्टि है, व्यापक दृष्टि है, एक अन्वेषी की आँख है, उसकी कोई एक राह नहीं है, वह जहाँ भी होती है, उसे चार-चार राहें एक साथ नजर आती हैं। नयी कविता की दृष्टि परिवेश के प्रति प्रश्नाकुल, यथार्थवादी और मूल्यान्वेषी है। नये कवि की मूल्यान्वेषी दृष्टि यथार्थ में गहरी डुबकी लगाकर मोती ग्रहण करने वाली है । वास्तव में नयी कविता की दृष्टि एक सर्वथा स्वतंत्र, बौद्धिक, वैज्ञानिक और संवेदनशील मानव की दृष्टि है।
नयी कविता की इस बौद्धिक, विवेकशील और प्रयोगशील दृष्टि ने उसके कथ्य और शिल्प को भी व्यापक स्तर पर प्रभावित करके उसे नयी दिशाएँ प्रदान की हैं। नयी कविता की प्रयोगधर्मिता, परिवेशधर्मिता, मूल्यबद्धता और स्वातंन्न्य भावना ने उसकी दिशाओं को निर्मित किया है। प्रयोगवादिता की दिशा, परम्परा से आगे बढ़ने की दिशा, अस्वीकृत मूल्यों के प्रति विद्रोहात्मकता की दिशा, व्यक्तिवादिता और यांत्रिकता की दिशा, अस्मिता का संघर्ष एक प्रमुख दिशा, शहरी संवेदना की दिशा, अनास्था और आक्रोश से गुम्फित कुण्ठा और विसंगति की दिशा, समसामयिक चेतना के प्रति जागरूकता की दिशा, नारी स्वातंन्न्य की दिशा, प्रतीक, बिम्ब, क्षण और अस्तित्व चेतना की दिशा, अनगढ़ और अलगाव की दिशा, देशी-विदेशी वादों को अपनाने की दिशा, मिथक और फंतासी के प्रयोग की दिशा, दुरूहता आदि। प्रस्तुत शोध-पत्र में नयी कविता के इसी दृष्टिबोध और विविध दिशाओं पर मौलिक ढंग से विचार करना है।