UGC Approved Journal no 63975(19)

ISSN: 2349-5162 | ESTD Year : 2014
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Volume 11 | Issue 4 | April 2024

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Published in:

Volume 9 Issue 4
April-2022
eISSN: 2349-5162

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Published Paper ID:
JETIR2204315


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400568

Page Number

d138-d139

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Jetir RMS

Title

SAMAKALIN SAHITY MENDAHALAT HIMARSH

Abstract

दलित अर्थ का व्यापक रूप पीडित ले अर्थ में प्रयुक्त होता है। समकालिन साहित्य समाज में हो रहे बदलाव को उजागर करते जाता है। साहित्य समाज का दर्पण है। भारत अनेकता में एकता दर्शानेवाला देश है। हम भारत देश के वासी है भाईचारा जानते हैं। भारत का कोई भी साहित्य हो अपने आप में एक नया पन चाहता है और नया पन लाता है। हिन्दी साहित्य हो या कोई अन्य साहित्य उसमें दलित विमर्ष को शामिल किया गया है। दलित साहित्य लेखन में दलित साहित्य का नक्षा ही बदल दिया। इस साहित्य को खुद दलित साहित्यकार अपने विचार प्रकट करते जाते हैं उससे अन्य दलित् साहित्यकारों को प्रोस्ताहन मिलता है। दलित साहित्य से प्रेरना लेखर दलित स्त्री साहित्यकरों ने दलित साहित्य का मार्ग ही बदल दिया। जहाँ पुरूष साहित्यकार अपने विचार व्यक्त करते हैं, वहीं स्त्री साहित्यकार भी अपने विचार व्यक्त करती जा रही है। इससे समाज और साहित्य में बदलाव देखा जा सकता है। एक दिन था जब स्त्री पुरूषों की समानता नहीं कर सकती थी, दलित गाँव में नहीं आसकता था पर आज कौन दलित है? कौन उच्चवर्ग? यह समझना बहुत मुश्किल है क्यों सब समानता के दम पर अपना-अपना हक्क पाते जा रहे हैं । यहीं बदलाव है। स्वतंत्रा पूर्व भारत में दलितों की सामाजिक, आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय थी। एक समय था जब १९ वीं सदी में केरल के त्रावणकोर के राजा द्वारा (निचली) दलित जातियों की महिलाओं के खिलाफ लगाए जाने वाले क्रूर ब्रेस्ट टैक्स को कत्म करने के लिए एक महिला नें जिसका नाम नागेली था उसने अपने दोनों स्थन काटकर एक केले के पत्ते पर रखकर टैक्स अधिकारी के सामने रख दिया। नागुली ने तो दम तोड दिया पर इससे पूरे समाज के लोग टैक्स के खिलाफ हो गये। तब यह महिलाओं पर लगने वाला स्तन टैक्स खारिज हो गया। एक नागुली का समय था और एक आज का समय दलित शब्द का स्वरूप ही बदलगया है। हिन्दी साहित्य में दलित साहित्य कहानियों का लेखन सन १९८० के आस पास में आरंभ हुआ। हिन्दी साहित्य में दलितों के जीवन को केंद्र में रखकर अनेक लेखकोने किताबें लिखि है उसमें प्रमुख- निराला, धूमिल. प्रेमचंद जगदिशचंद्र, रेणू, अमृत लाल नागर, किरिजा किशोर, नागार्जुन आदि है। इन लेखकोने समाज के सामने दलितों को जैसे थे वैसे ही प्रस्तुत किया। यह एक महान कार्य था जो आरंभ करना और उसको आगे ले जाना क्यों? क्यों कि उस समय दलितोंको समाज में स्थान नहीं था।

Key Words

समकालीन साहित्य में दलित विमर्श

Cite This Article

"SAMAKALIN SAHITY MENDAHALAT HIMARSH", International Journal of Emerging Technologies and Innovative Research (www.jetir.org), ISSN:2349-5162, Vol.9, Issue 4, page no.d138-d139, April-2022, Available :http://www.jetir.org/papers/JETIR2204315.pdf

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"SAMAKALIN SAHITY MENDAHALAT HIMARSH", International Journal of Emerging Technologies and Innovative Research (www.jetir.org | UGC and issn Approved), ISSN:2349-5162, Vol.9, Issue 4, page no. ppd138-d139, April-2022, Available at : http://www.jetir.org/papers/JETIR2204315.pdf

Publication Details

Published Paper ID: JETIR2204315
Registration ID: 400568
Published In: Volume 9 | Issue 4 | Year April-2022
DOI (Digital Object Identifier): http://doi.one/10.1729/Journal.30503
Page No: d138-d139
Country: Belagavi, -, India .
Area: Engineering
ISSN Number: 2349-5162
Publisher: IJ Publication


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