UGC Approved Journal no 63975(19)

ISSN: 2349-5162 | ESTD Year : 2014
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Volume 11 | Issue 4 | April 2024

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Published in:

Volume 10 Issue 1
January-2023
eISSN: 2349-5162

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Published Paper ID:
JETIR2301584


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507807

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f615-f619

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Jetir RMS

Title

सुमति सक्सेना लाल की कहानियों में स्त्री अंतर्द्वन्द्व

Abstract

मानवीय सभ्यता का विकास स्त्री और पुरुष दोनों की भागीदारी से ही संभव हुआ है। यद्दपि मनुष्य पाषाण युग में समूह में जीवनयापन करते थे तथापि स्त्री को बच्चों के लालन-पालन की जिम्मेदारियां और पुरुष बाहरी कार्य के माध्यम से श्रम का बंटवारा किया गया था । गुफाओं में रहते हुए बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी सामान्यतः स्त्री के कंधों पर थी। कृषि युग में यही जिम्मेदारी द्विगुणित हो गई तथा स्त्री परिवार एवं खेतों में पुरुषों के साथ श्रम का कार्य करने लगी थी । सांस्कृतिक विकास के क्रम में परिवार में स्त्री का स्थान केन्द्रीय हो गया था, अतः मातृसत्ताक व्यवस्था निर्मित हुई जिसके अवशेष अनेक समाजो में आज भी विद्ममान है । मुद्रा के चलन ने मानव समाज को मालिक और श्रमिक के रुप में विभाजित कर दिया । संपत्ति की अवधारणा ने जन्म लिया और पुरुष को शक्तिशाली मानकर परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी प्राप्त हुई। यही से स्त्री धीरे-धीरे हाशिये की ओर जाने लगी । औद्योगिकीकरण के साथ ही नारी का स्थान दुय्यम होने लगा था । आधुनिकता के साथ-साथ स्त्री चेतना का विकास हुआ तथा स्त्री विमर्श के माध्यम से स्त्री अस्मिता, स्त्री की सामाजिक समस्याओं, पारिवारिक समस्याओं पर विचार मंथन हुआ तथा अनेकानेक कानून बने । इसी बीच बाजारीकरण का दौर आया और मनुष्य भी व्यवस्था में एक संसाधन बन गया, जिसने समाज में मानव को भी केवल भौतिक वस्तु के रूप में देखना आरंभ कर दिया । जिससे मूल प्रश्नों से इतर अनेक नये प्रश्न भी निर्माण हो गए हैं। भारतीय समाज सदा से ही परंपराप्रिय रहा है। परिवर्तन इतनी तेजी से हुआ है कि पुरानी व्यवस्थाएं जर्जर हो रही है तथा नई व्यवस्थाएं पूर्णरूपेण अस्तित्व में आनी शेष हैं । साहित्य हमेशा मानवीय हित की दृष्टि से सृजित होता, इसलिए हिंदी साहित्य में स्त्री लेखन के माध्यम से स्त्री प्रश्न निर्मित हुए है, उनको केवल भौतिक दृष्टि से ही नहीं, मानवीय दृष्टि से भी पुर्नमूल्यांकित करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। समाज में एकल जीवन की परिपाटी तेजी से बढ़ रही है, पारिवारिक व्यवस्था की स्थितियां परिवर्तित होने पर वैकल्पिक व्यवस्थाओं पर विचार की आवश्यता है। प्रस्तुत शोधालेख में स्त्री के अन्तर्द्वन्द्वों को ‘सुमति सक्सेना लाल’ की कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है ।

Key Words

पाषाण युग, कृषि युग, संपत्ति, स्त्री चेतना, स्त्री विमर्श, औद्योगिकीकरण, बाजारीकरण, स्त्री लेखन, स्त्री प्रश्न ।

Cite This Article

"सुमति सक्सेना लाल की कहानियों में स्त्री अंतर्द्वन्द्व", International Journal of Emerging Technologies and Innovative Research (www.jetir.org), ISSN:2349-5162, Vol.10, Issue 1, page no.f615-f619, January-2023, Available :http://www.jetir.org/papers/JETIR2301584.pdf

ISSN


2349-5162 | Impact Factor 7.95 Calculate by Google Scholar

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"सुमति सक्सेना लाल की कहानियों में स्त्री अंतर्द्वन्द्व", International Journal of Emerging Technologies and Innovative Research (www.jetir.org | UGC and issn Approved), ISSN:2349-5162, Vol.10, Issue 1, page no. ppf615-f619, January-2023, Available at : http://www.jetir.org/papers/JETIR2301584.pdf

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Published Paper ID: JETIR2301584
Registration ID: 507807
Published In: Volume 10 | Issue 1 | Year January-2023
DOI (Digital Object Identifier):
Page No: f615-f619
Country: ARVI, Dist. Warha, Maharashtra, India .
Area: Other
ISSN Number: 2349-5162
Publisher: IJ Publication


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