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ISSN: 2349-5162 | ESTD Year : 2014
Volume 12 | Issue 10 | October 2025

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Published in:

Volume 12 Issue 1
January-2025
eISSN: 2349-5162

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Published Paper ID:
JETIR2501213


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c88-c91

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Jetir RMS

Title

श्री नरेश मेहता के काव्य में वैष्णव – भावों की अभिव्यंजना

Abstract

ही वैष्णव कवियों ने साहित्य में अपना वर्चस्व कायम रखा है।इसी परम्परा को आगे बढ़ाने में सहयोग दिया है श्री नरेश मेहता ने।बेशक उनकी वैष्णवता भक्तिकाल के वैष्णव भाव से अलग है,फिर भी इसी का स्वरूप निर्धारण करती है। वैष्णवता अर्थ की दृष्टि से:- वैष्णव का अर्थ है व्यापक/विष्णु भाव।यही वैष्णवता का अर्थ-‘ वैष्णव होने की अवस्था या भाव वैष्णव आचारों – व्यवहारों का पालन।‘ १ व्यक्ति समर्पण की निष्णात प्रवृति ही वैष्णवता है।जब वैष्णव भक्ति – दृष्टि,प्रभु कृपा,सेवा की लालसा में विलीन होती है,यही स्थिति वैष्णवता कहलाती है। श्री नरेश मेहता वैष्णव कवि माने जाते हैं। नरेश मेहता का काव्य वैष्णव भावों से सराबोर है क्षण अपनी संस्कृति से जोड़े रखता है। मेहता की वैष्णवता धार्मिक दृष्टि की नहीं बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड की वानस्पतिका एवं मानवीय चेतना की वैष्णवता है। श्रीमति सुमित्रा अग्रवाल के शब्दों में,”नरेश जी आशा और अनास्था के कवि हैं,उनकी दृष्टि शिव दृष्टि है,उनके संस्कार वैष्णव संस्कार है।“२ नरेश मेहता के काव्य में वैष्णवता पृष्ठभूमि के रूप में है और सारा काव्य उसी के सहारे खड़ा है। मेहता अपनी वैष्णव संस्कारों के बारे कहते है,”वैष्णवी ऊधर्वोनमुखता ही शिवत्व है और शिवत्व की अवतारणा ही वैष्णवता है। मानवीय करुणा और जैविक अहिंसा की भावनात्मक रामलीला वैष्णवता है। अणु मात्र में जीवन का स्पंदन अनुभव करना दार्शनिक प्रतीति है, परन्तु उसके साथ कुलगोत्रता, बंधु – बांधवता अथवा सुख दुखमय आत्मीयता अनुभव करना वैष्णवता है।“३ मेहता के संपूर्ण काव्य प्रकृति के विभिन्न रंगों से सजा हुआ आसमान की सतरंगी छटा का आभास देता हैं।उनकी वैष्णवता, आस्तिकता, प्रकृति का स्वरूप सब साथ साथ चलते हैं। राजकमल राय लिखते है,” वे स्त्रष्टा की परमसत्ता को उसके व्यक्त रूप में ही देखते ही अनुभव करते हैं। उन्हें प्रकृति और चेतन – अचेतन विश्व के परे जाकर उसके रचयिता की तलाश की जरूरत उतना बेचैन नहीं करती। प्रकृति और समूचा व्यक्त ब्रह्मांड ही उन्हें पूरी तौर पर अपने में रमा लेता है।उनकी वैष्णवता किसी विष्णु की खोज में उतनी परेशान नहीं होती,यह सृष्टि ही उन्हें विष्णु रूप प्रतीत होती है।इसी में उसी भक्ति निष्ठा से वे रम जाते हैं, जिससे भक्त अपने आराध्य में रमता था।“४ नरेश मेहता को संपूर्ण प्रकृति गायत्री मंत्र का पाठ करती प्रतीत होती है। ‘अरण्यानी से वापसी ‘ कविता की यह पंक्तियां दृष्टव्य है:-

Key Words

श्री नरेश मेहता के काव्य में वैष्णव – भावों की अभिव्यंजना

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"श्री नरेश मेहता के काव्य में वैष्णव – भावों की अभिव्यंजना", International Journal of Emerging Technologies and Innovative Research (www.jetir.org), ISSN:2349-5162, Vol.12, Issue 1, page no.c88-c91, January-2025, Available :http://www.jetir.org/papers/JETIR2501213.pdf

ISSN


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"श्री नरेश मेहता के काव्य में वैष्णव – भावों की अभिव्यंजना", International Journal of Emerging Technologies and Innovative Research (www.jetir.org | UGC and issn Approved), ISSN:2349-5162, Vol.12, Issue 1, page no. ppc88-c91, January-2025, Available at : http://www.jetir.org/papers/JETIR2501213.pdf

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Published Paper ID: JETIR2501213
Registration ID: 553553
Published In: Volume 12 | Issue 1 | Year January-2025
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Page No: c88-c91
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Area: Engineering
ISSN Number: 2349-5162
Publisher: IJ Publication


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