Abstract
इजरायल सन 1948 में अस्तित्व में आया और इसके 24 घंटे के भीतर ही इसके पड़ोसी देशों मिस्र, जॉर्डन, सीरिया, लेबनान और इराक ने इस पर आक्रमण कर दिया। इजरायल ने बहादुरी से युद्ध किया और अपने सभी पड़ोसियों को हराते हुए अपने भूक्षेत्रों का सफलतापूर्वक बचाव किया । 17 सितंबर 1950 को, भारत ने आधिकारिक तौर पर इज़राइल राज्य को मान्यता दी तथा 1953 में इज़राइल को मुंबई में एक वाणिज्य दूतावास खोलने की अनुमति दी गई परंतु दोनों देशों के मध्य विशेष राजयनिक सम्बंध नहीं रहे। इसके मुख्यतः दो कारण थे। - पहला, भारत गुट निरपेक्ष राष्ट्र था और दूसरे गुट निरपेक्ष राष्ट्रों की तरह इज़राइल को मान्यता नहीं देता था। दूसरा मुख्य कारण यह था कि भारत हमेशा से फिलिस्तीन की स्वतन्त्रता का समर्थक रहा। भारत-इज़राइल संबंधों में चुनौतियाँ हैं- प्रथम, इजराइल ईरान को अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानता है, जबकि भारत ऊर्जा आपूर्ति तथा अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक चाबहार बंदरगाह मार्ग के लिए सहयोग को महत्व देता है। द्वितीय, इजरायल के अरब देशों के साथ मतभेद हैं, जबकि भारत अरब देशों के प्रति सहयोगात्मक दृष्टिकोण रखता है। तृतीय, चीन एशिया में इजरायल का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जबकि चीन के साथ भारत के सम्बंध कई उतार-चढाव से भरपूर रहे हैं जिसे सामान्य बनाने का प्रयास जारी हैं।
1991 में पूर्व सोवियत संघ के विघटन से न केवल भारत-अमेरिका संबंधों में वृद्धि के अवसर उपलब्ध हुए, बल्कि जापान, आसियान देशों और इजरायल जैसे कई अमेरिकी सहयोगियों के लिए भी संबंध बेहतर हुए।परिणामस्वरूप 1992 से पारस्परिक सम्बंधों का नया दौर आरम्भ हुआ, जब भारत ने तेल अवीव में दूतावास खोला। तब से दोनों देशों के बीच व्यापार तेज़ी से बढ़ा है। भारत, इज़राइल का एशिया में दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। भारत, इज़राइल को हीरे-जवाहरात, मोती, कीमती पत्थर, ऑटोमोटिव डीज़ल, विमानन टरबाइन ईंधन, विद्युत उपकरण, कपड़ा, रडार उपकरण, परिवहन उपकरण, चावल, और गेहूं का निर्यात करता है तथा इज़राइल से रक्षा और तकनीकी उपकरण, अंतरिक्ष उपकरण, पोटैशियम क्लोराइड, मेकैनिकल एप्लायंस, खनिज, और प्रिंटेड सर्किट का आयात करता है। भारत और इज़राइल ने विज्ञान और तकनीक के विकास, अंतरिक्ष तकनीक क्षेत्र, तथा जल संसाधन प्रबंधन और विकास के क्षेत्र में सहयोग आरम्भ किया है। परंपरागत रूप से, इज़रायल और फिलिस्तीन के प्रति भारत की विदेश नीति एक हाईफेनेशन विदेश नीति रही है। हाल के दिनों में भारत को नीति को डी-हाईफनेशन की ओर स्थानांतरित होते हुए देखा गया है।यह शोध पत्र उच्च शिक्षा विभाग उत्तर प्रदेश, लखनऊ के द्वारा वित्त पोषित लघु शोध परियोजना के अंतर्गत लिखा गया है।