Title
हिन्दी साहित्य में समाहित प्रकृति का सुन्दर चित्रण
Abstract
सारांश – वर्तमान में चारों ओर फैले हुए प्रदूषण को कम करने के लिए विभिन्न वैज्ञानिकों एवं पर्यावरणविदों के समान ही हिन्दी साहित्य काव्य परंपरा में कवियों का महत्वपूर्ण योगदान है। इन्होंने निरंतर साहित्य के माध्यम से पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने का प्रयास कर, अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया है। इन सबके पश्चात् भी प्रदूषण निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। अतः इस और कुछ ठोस कदम उठाए जाने चाहिए तथा कठोर प्रयास किये जाने चाहिए और अपनी नैतिक जिम्मेदारी को स्वीकारते हुए अधिक-से-अधिक लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने का प्रयास किया जाना चाहिए।
प्रकृति ने हमें जीने के लिए बहुमूल्य सुविधाएँ प्रदान की हैं। अतः हमारा कर्तव्य है कि हम इसका संरक्षण करें। इसके बारे में कवि श्री जीतेन्द्र जलज कहते हैं कि –
"जब भी जिसने जो भी माँगा प्रकृति ने अपने हाँथ को संकुचित किये बिना सब कुछ और सही समय पे दिया।" परन्तु फिर भी हम प्रकृति को प्रदूषण मुक्त पर्यावरण नहीं दे सकते।
श्री रुपेश कन्नोजिया जी प्रकृति की आवश्यकता तथा सुंदरता की तुलना माँ से की है। वे कहते हैं कि –
"प्रकृति तो हमेशा ही मेरी सुन्दर माँ जैसी है।
गुलाबी सुबह से माथा चूमकर हँसते हुए उठती है।
गर्म दोपहर में ऊर्जा भरके दिन खुशहाल बनाती है।
रात की चादर में सितारे भरकर मीठी नींद सुलाती है।
प्रकृति तो हमेशा ही मेरी सुन्दर माँ जैसी है।"
काव्य में कोयल के माध्यम से भी विश्व के समस्त जीव-जंतुओं के आवास की समस्या के बारे में ध्यान आकर्षित करने की चेष्टा की गई है।
सूर्य के ताप में वृद्धि, नदियों का प्रदूषित होना, वनों का नष्ट होना तथा प्रदूषित होता वातावरण आदि अनेक विषयों पर कवियों ने काव्य पंक्तियों के माध्यम से समय-समय पर समाज में जागरूकता लाने का प्रयास किया है।
विश्व स्वस्थ्य संगठन के आंकड़ों के आधार पर हमें कुछ बातों पर विचार करने की आवश्कयता है। जिसमें कहा गया है कि आज पर्यावरण प्रदूषण इतना अधिक बढ़ चुका है कि साँस लेने के लिए शुद्ध वायु मिल पाना भी कठिन हो गया है। यह स्थिति केवल भारत ही नहीं अपितु विदेशों में भी यही स्थिति बनी हुई है। आज भारत की सभी मुख्य तथा बड़ी नदियाँ प्रदूषित होती जा रही हैं। पर्वतों-पहाड़ों को खोदकर समतल बनाया जा रहा है। जंगलों को काटकर साफ कर दिया गया। मनुष्य ही नहीं अपितु जानवरों के लिए भी जीना मुश्किल हो गया है। वन्य जीवों को मारा जा रहा है। उनकी देखरेख की किसी को कोई चिंता ही नहीं है। मनुष्य अपने स्वार्थवश इतना अँधा हो गया है कि उसे प्रकृति की कोई परवाह ही नहीं है।
वैदिक काल के चिंतक, कवि तथा कथा व साहित्यकार प्रकृति के महत्त्व से भलीभांति परिचित थे। इसी सन्दर्भ में वेदों में कहा गया है कि –
"पूर्णभदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।"
बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के कारण मानव जीवन संकट में पड़ गया है। उपभोक्तावादी प्रवृत्तियाँ, भूमण्डलीकरण, औद्योगीकरण एवं पूँजीवाद आदि कुछ ऐसे तत्व हैं, जिनकी वजह से पर्यावरण संकट में है। जीवन एवं पर्यावरण संकट इस सदी की कुछ प्रमुख चुनौतियाँ हैं। बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के कारण अनेक बीमारियाँ फैल रही हैं एवं इस वजह से मानव जीवन संकट में है। इसका बहुत बड़ा कारण है, प्राकृतिक तत्वों का अत्यधिक दोहन। पूँजीवादी प्रवृत्ति व औद्योगीकरण के कारण प्रकृति को बहुत अधिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।
मनुष्य ने अपनी सुख-सुविधाओं के लिए प्रकृति पर प्रभुत्व स्थापित करने की जो नीति अपनाई है, उसके भयंकर परिणाम की ओर संकेत करते हुए एंगिल्स ने अपनी पुस्तक 'डायनेसी ऑफ़ नेचर' में स्पष्ट लिखा है- "हमको इस बात से संतुष्ट नहीं होना चाहिए कि मनुष्य प्रकृति के ऊपर विजय प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार की प्रत्येक विजय के लिए प्रकृति हमसे बदला लेती है।" अत्यधिक उपभोगवाद की मानसिकता के चलते प्रकृति को बहुत नुकसान हो रहा है, जिसका परिणाम भयावह बीमारियाँ एवं प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन है।
Key Words
संकेत शब्द- प्रकृति, उपभोक्तावादी प्रवृत्तियाँ, हिन्दी साहित्य, मानसरोवर, भूमण्डलीकरण, आकर्षक, औद्योगीकरण, कल्पना शक्ति, काव्यमय, मेघदूत, अस्तित्व एवं पूँजीवाद।
Cite This Article
"हिन्दी साहित्य में समाहित प्रकृति का सुन्दर चित्रण", International Journal of Emerging Technologies and Innovative Research (www.jetir.org), ISSN:2349-5162, Vol.11, Issue 2, page no.g205-g215, February-2024, Available :
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ISSN
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"हिन्दी साहित्य में समाहित प्रकृति का सुन्दर चित्रण", International Journal of Emerging Technologies and Innovative Research (www.jetir.org | UGC and issn Approved), ISSN:2349-5162, Vol.11, Issue 2, page no. ppg205-g215, February-2024, Available at : http://www.jetir.org/papers/JETIR2402626.pdf
Publication Details
Published Paper ID: JETIR2402626
Registration ID: 533466
Published In: Volume 11 | Issue 2 | Year February-2024
DOI (Digital Object Identifier):
Page No: g205-g215
Country: Indore, MADHYA PRADESH, India .
Area: Arts
ISSN Number: 2349-5162
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